Presenting Urdu Shayari at its best, in a book named “Har Lamha Aur”
Written by Razdan Raaz
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न जाने हुआ क्या मेरी ज़िंदगी को
कभी इसके लब पर न देखा हँसी को
नया एक सदमा दिया हर किसी ने
कहाँ तक मैं बाँटूं जहाँ में खुशी को
ये लम्हों की जो तितलियाँ उड़ रही हैं
चलो आज यारो पकड़ लें सभी को
नसीबों से हम आज सब मिल गये हैं
करें जाविदाँ इस सुहानी घड़ी को
अगर दोस्ती ‘राज़’ रखनी है क़ायम
तो माँगो न कुछ, देते जाओ सभी को
Bahut khoob..
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Thanks
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